उमर अब्दुल्ला के लिए असली लड़ाई धारा 370 का मुद्दा

omar abdullah

नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनने के साथ ही जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश से पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मुद्दा फिर से उठ रहा है. वहीं, धारा 370 को बहाल करने के मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो गई है. बता दें, महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने धारा 370 को बहाल करने के मुद्दे को राजनितिक स्वरुप दे दिया है. मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि बहुत जल्द जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश से पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा, लेकिन इस बात की संभावना कम है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर कोई फैसला लेगी.

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की कैबिनेट ने शपथ लेने के बाद सबसे पहले जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का प्रस्ताव पारित किया. गेंद अब केंद्र के पाले में है क्योंकि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी शनिवार को जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सोमवार को जब दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे तो वह जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश से पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव सौंपेंगे. हालांकि, अगर उमर मोदी के साथ मिलकर प्रस्ताव सौंपते हैं तो भी जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा क्योंकि इसकी प्रक्रिया थोड़ी जटिल है.

इस प्रक्रिया के मुताबिक प्रस्ताव उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा और अगला फैसला केंद्र सरकार को लेना है. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में, केंद्र सरकार को केंद्र शासित प्रदेश से जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का अधिकार है, क्योंकि केवल केंद्र सरकार ही पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए बदलाव की प्रक्रिया कर सकती है. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया था. इसलिए पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए संसद में कानून पारित कर पुनर्गठन अधिनियम में बदलाव करना होगा. ये बदलाव संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत किए जाएंगे.

राज्य का दर्जा देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में नए विधायी बदलावों की मंजूरी की आवश्यकता होगी, यानि कि उमर की कैबिनेट द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है. संसद की मंजूरी के बाद यह प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद वह अधिसूचना जारी करेंगे और जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा.

जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्य में बहुत कुछ बदल जाएगा. केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते जम्मू-कश्मीर के पास कानून बनाने या अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति नहीं है, लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्य विधानमंडल के पास सार्वजनिक व्यवस्था और समवर्ती सूची के मामलों में कानून बनाने की शक्ति होगी. फिलहाल राज्य सरकार को अगर एक भी रुपया खर्च करना है तो उसे उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी पड़ती है. पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद अगर राज्य सरकार कोई वित्तीय विधेयक पेश करती है तो उसे उपराज्यपाल की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी.

इसके अलावा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और अखिल भारतीय सेवाओं पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण होगा. राज्य में अधिकारियों का ट्रांसफर और पोस्टिंग राज्य सरकार कर पायेगी और उपराज्यपाल का इस पर कोई नियंत्रण नहीं रहेगा. अनुच्छेद 286, 287, 288 और 304 के संशोधन से राज्य सरकार को व्यापार, कराधान और वाणिज्य के मामलों में सभी अधिकार मिल जाएंगे और सरकार अपना राजस्व बढ़ाने के लिए नए कर भी लगा सकेगी. केंद्र शासित प्रदेश में कुल संख्या के 10 फीसदी विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है. लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होने के साथ ही मंत्रियों की संख्या पर लगी यह रोक भी हट जाएगी और कुल संख्या के 15 फीसदी तक विधायकों को मंत्री बनाया जा सकेगा. इससे उमर को राहत मिलेगी क्योंकि उमर कुछ और विधायकों को मंत्री पद देकर खुश कर सकेंगे. इसके अलावा राज्य सरकार को जेल के कैदियों को रिहा करने की शक्ति मिल जाएगी. राज्य सरकार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के अन्य चुनावी वादों को पूरा करने के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए अधिक शक्ति मिलेगी और केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी.

हालांकि, ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि मोदी सरकार कितनी जल्दी कानून बनाती है. बता दें, जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य के दर्जे का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है और सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर दो महीने में सुनवाई करने को तैयार हो गया है. जहूर अहमद भट और खुर्शीद अहमद मलिक की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण द्वारा दायर याचिका पर मुख्य न्यायाधीश खुद सुनवाई करने वाले हैं, लेकिन संभावना है कि इससे पहले मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे देगी. भाजपा ने सत्ता में आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया है, इसलिए केंद्र द्वारा कोई बाधा उत्पन्न करने की संभावना नहीं है.

हालांकि, कश्मीर में उमर के लिए असली लड़ाई धारा 370 का खात्मा है. उमर ने विधानसभा चुनाव के दौरान घोषणा की थी कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के प्रस्ताव को पहली कैबिनेट बैठक में ही मंजूरी दी जाएगी. 16 अक्टूबर को सीएम पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने अगले ही दिन प्रस्ताव पारित कर यह वादा निभाया, लेकिन पीडीपी ने इस पर भी आपत्ति जताई है.

पीडीपी के मुताबिक उमर सरकार को 370 बहाल करने का प्रस्ताव पारित करना था. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मुताबिक, उमर अब्दुल्ला ने 5 अगस्त, 2019 को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित करके केंद्र के फैसले का समर्थन किया है. क्योंकि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया था. पीडीपी के मुताबिक उमर ने अनुच्छेद 370 बहाल करने के वादे पर ही वोट मांगे थे, इसलिए उन्हें पहले ये वादा पूरा करना होगा.

2014 के विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी पीडीपी को इसबार सिर्फ 3 सीटें मिलीं और महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती भी बिजबेहरा सीट से हार गयी. पीडीपी को दोबारा कुर्सी पर बैठने के लिए एक बड़े मुद्दे की जरूरत है, इसलिए वह इस मुद्दे पर दांव खेलेगी. अब देखना यह है कि उमर इसका मुकाबला कैसे करते हैं.

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