पुणे शहर-ग्रामीण से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़

Pune City-Rural Becomes Completely Congress-Free
Pune City-Rural Becomes Completely Congress-Free

पुणे: कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले पुणे शहर और ग्रामीण इलाके अब पूरी तरह से कांग्रेस-मुक्त हो गए है. शनिवार को हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में पार्टी एक भी सीट हासिल करने में विफल रही. यह 21 विधानसभा क्षेत्रों और चार लोकसभा सीटों वाले जिले में पार्टी के लिए एक नाटकीय गिरावट है, जिनमें से किसी में भी अब इस पुरानी पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं है.

पिछली विधानसभा में कांग्रेस के पास पुणे जिले की तीन सीटें थीं. जिसमें संग्राम थोपटे (भोर), संजय जगताप (पुरंदर), और रवींद्र धंगेकर (कस्बा पेठ) शामिल है. हालांकि, इस बार तीनों मौजूदा विधायक चुनाव हार गए. यह हार इस बात को रेखांकित करती है कि मोहन धारिया, विट्ठलराव गाडगिल और सुरेश कलमाड़ी जैसे दिग्गजों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में पार्टी का प्रभाव कम होता जा रहा है. पार्टी का प्रदर्शन न केवल पुणे में बल्कि पूरे पश्चिमी महाराष्ट्र में भी गिरी है, जहां अब इसकी मौजूदगी कुछ अलग-थलग निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित रह गई है. 21 सीटों में से कांग्रेस ने इस बार पांच सीटों पर चुनाव लड़ा.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, आंतरिक असंतोष ने कांग्रेस के अभियान को और कमजोर कर दिया है. तीन प्रमुख नेता- आबा बागुल (पर्वती), मनीष आनंद (शिवाजीनगर) और कमल व्यवहारे (कस्बा पेठ) ने आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत कर दी, जिससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत में मदद मिली. कांग्रेस नेताओं ने इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार किया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता अरविंद शिंदे ने कहा, “हम मतदाताओं के जनादेश का सम्मान करते हैं, हालांकि परिणाम निराशाजनक हैं. कई आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं, यहां तक ​​कि बालासाहेब थोरात, पृथ्वीराज चव्हाण और यशोमति ठाकुर जैसे नेता भी हार गए हैं. अब संगठन के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

2019 में कांग्रेस के पास पुणे जिले से दो विधायक थे, जबकि 2023 के उपचुनाव में वह भाजपा के गढ़ कस्बा पेठ को भी जीतने में सफल रही. इस बार, पार्टी ने ये सभी सीटें खो दीं. कांग्रेस नेता मोहन जोशी ने कहा, “हमारी पार्टी ने पुणे में अपना प्रतिनिधित्व खो दिया है, जो एक गंभीर झटका है. हमें आत्ममंथन करने और आगामी स्थानीय चुनावों के लिए पार्टी के भीतर आत्मविश्वास पैदा करने की आवश्यकता है.

नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने नेतृत्व में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया.“ भाजपा, एनसीपी, शिवसेना और मनसे जैसी अन्य पार्टियों में तीसरी और युवा पीढ़ी को नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए सक्रिय रूप से तैयार किया जा रहा है. हर दशक में, वे जानबूझकर नए नेताओं के लिए जगह बनाते हैं. हालांकि, कांग्रेस में वही पुराने नेता शहर पर हावी हैं. अब समय आ गया है कि वरिष्ठ नेता सलाहकार की भूमिका में वापस आएं और नए नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त करें.”

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, पुणे से कांग्रेस का पूरी तरह से गायब होना, एक समय पर कांग्रेस का गढ़ रहा शहर, इसके संगठनात्मक और चुनावी पतन का एक महत्वपूर्ण संकेत है. उन्होंने कहा, “अब चुनौती पार्टी को नए नेतृत्व और रणनीतियों के साथ पुनर्जीवित करने की है ताकि क्षेत्र में अपनी पैठ फिर से हासिल की जा सके.”

बागियों का प्रदर्शन –
पर्वती में आबा बागुल को 10,476 वोट मिले
शिवाजीनगर में मनीष आनंद को 13,601 वोट मिले
कस्बा पेठ में कमल व्यवहारे को 552 वोट मिले

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