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जानिए महाराष्ट्र के परिधानों का गौरवशाली इतिहास

NEWS DESK TOP NEWS HINDI by NEWS DESK TOP NEWS HINDI
November 15, 2024
in महाराष्ट्र
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Glorious history of Maharashtra's costumes

Glorious history of Maharashtra's costumes

मुंबई:आज हम बात करेंगे महाराष्ट्र के पारंपरिक परिधानों की, जिनकी शुरुआत सदियों पुरानी है और जो मराठी संस्कृति, परंपराओं और विरासत का प्रतीक हैं। महाराष्ट्र का परिधान न केवल वहां के लोगों की पहचान है, बल्कि यह इतिहास और उनकी धरोहर को भी दर्शाता है। तो आइए जानते हैं महाराष्ट्र के परिधानों की शुरुआत, उनकी खासियत और कैसे समय के साथ उनमें बदलाव आया।

हर राज्य का अपना अलग परिधान होता है जो उस राज्य का प्रतिनिधित्व करता है तो चलिए जान लेते हैं महाराष्ट्र राज्य के परिधान की कहानी.

1. पारंपरिक मराठी परिधान की शुरुआत:

महाराष्ट्र के परिधानों की परंपरा सदियों पुरानी है। माना जाता है कि यह प्राचीन काल से लेकर मराठा साम्राज्य के युग तक फैली हुई है। छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में, मराठा योद्धाओं का पारंपरिक परिधान धोती, कुर्ता और पगड़ी था। वहीं, महिलाओं का प्रमुख परिधान नऊवारी (9 गज की) साड़ी था, जिसे ‘लुगडा’ भी कहा जाता था। इसे खासतौर पर मराठा महिलाएं पहनती थीं और यह मराठा संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रही।

2. पुरुषों के परिधान:

महाराष्ट्र में पुरुषों के पारंपरिक परिधान में धोती, कुर्ता और पगड़ी शामिल होते हैं। धोती को वहां ‘धोतर’ कहा जाता है, और इसे विशेष शैली में बांधा जाता है। इसके साथ लंबा कुर्ता और सिर पर पगड़ी या ‘फेटा’ पहनना परंपरा का हिस्सा है। इस फेटे को खास तौर पर त्योहारों, उत्सवों और धार्मिक अवसरों पर पहना जाता है। पुणे, कोल्हापुर, और सतारा जैसे क्षेत्रों में फेटे की अलग-अलग शैली विकसित हुईं हैं, जो इस क्षेत्र की विशिष्ट संस्कृति को दर्शाती हैं।

3. महिलाओं का पारंपरिक परिधान:

महिलाओं का पारंपरिक परिधान नऊवारी साड़ी है, जिसे महाराष्ट्र की महिलाएं विशेष अंदाज में पहनती हैं। यह साड़ी मराठा साम्राज्य के समय से लोकप्रिय रही है और इसे पारंपरिक तरीके से इस तरह बांधा जाता है कि महिला आसानी से कोई भी शारीरिक काम कर सके। नऊवारी साड़ी पहनने का यह स्टाइल महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों जैसे कोल्हापुर, सांगली और सोलापुर में आज भी देखा जा सकता है।

4. विभिन्न क्षेत्रों में परिधान का अलग-अलग रूप:

महाराष्ट्र का प्रत्येक क्षेत्र अपने परिधान में कुछ न कुछ भिन्नता रखता है। जैसे-

कोल्हापुर: यहां की महिलाओं के परिधान में पायजामा-स्टाइल नऊवारी साड़ी देखने को मिलती है।

नासिक: नासिक के पुरुष अक्सर धोती और सफेद कुर्ते के साथ रंगीन फेटा पहनते हैं।

मुंबई: मुंबई जैसे शहरों में जहां आधुनिकता का प्रभाव ज्यादा है, वहां लोग पारंपरिक परिधान को थोड़ा कम पहनते हैं, लेकिन त्योहारों और विशेष अवसरों पर पारंपरिक कपड़ों में रंग देखने को मिलता है।

5. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व:

महाराष्ट्र के परिधान केवल पहनावा नहीं हैं, यह संस्कृति और इतिहास की पहचान हैं। महाराष्ट्र की महिलाएं खास तौर पर ‘पैठणी’ साड़ी पहनती हैं, जो मराठा काल की रॉयल्टी का प्रतीक मानी जाती है। पैठणी साड़ी की शुरुआत औरंगाबाद के पैठण में हुई, और इस साड़ी की बुनाई इतनी जटिल होती है कि इसे बनने में महीनों लग जाते हैं। इसी प्रकार पुरुषों के फेटा का रंग भी खास अर्थ रखता है। विवाह, जन्म, या धार्मिक अवसर पर लाल, पीले या केसरिया फेटा का प्रचलन है, जो खुशी और सम्मान का प्रतीक है।

यह सिर्फ कपड़े नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के इतिहास, परंपराओं और संस्कृति की कहानी बयां करते हैं। चाहे वह नऊवारी साड़ी हो, पैठणी की रॉयल्टी, या फिर पुरुषों का फेटा, यह सभी परिधान मराठा शौर्य और सौंदर्य का प्रतीक हैं। आज के आधुनिक युग में भले ही पहनावे में कुछ बदलाव आए हों, लेकिन पारंपरिक परिधान आज भी विशेष अवसरों पर मराठी लोगों की पहचान बने हुए हैं।

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