नई दिल्ली : 1983 में अमिताभ बच्चन, रजनीकांत की एक फिल्म आई थी – ‘अंधा कानून’. हेमा मालिनी, रीना रॉय, डैनी, प्रेम चोपड़ा, प्राण, अमरीश पुरी अभिनीत इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी थी और साल की पांचवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुयी थी.
इतनी मशहूर स्टारकास्ट और बॉक्स ऑफिस पर हिट होने के अलावा ये फिल्म अपने टाइटल की वजह से आज भी याद की जाती है. इसके बाद देश में ‘अंधा कानून’ शब्द इतना प्रचलन में आया कि कई बार अखबारों की हेडिंग में भी इस शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा. उसके बाद ये शब्द कई फिल्मों में भी सुनने को मिला. यह शब्द अन्याय के अर्थ में कटाक्ष के लिए प्रयोग किया जाता था और आज भी किया जाता है.
न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बांधी हुयी रहती थी इसलिए तब यह कटाक्ष हुआ था, लेकिन यह पहली बार नहीं था. सदियों पहले न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बांधी गई थी, तो इसका मूल उद्देश्य ही कटाक्ष करना था. भारत में ‘ब्लाइंड लॉ’ शब्द का प्रयोग मूल रूप से अंग्रेजी शब्द ‘ब्लाइंड जस्टिस’ से ही प्रचलित हुआ.
प्राचीन मिस्र में न्याय की माता नामक देवी की कल्पना की गई थी. सदियों बाद, देवी को लोग इसिस के नाम से जानने लगे. मिस्र में ऐसी कहानियां भी हैं जहां थेमिस नामक देवी न्याय करती है. ये न्याय की देवी थीं और इनके तराजू थामे हुए चित्र भी मिले हैं. तराजू की ख़ासियत यह है कि इसे एक तरफ झुका हुआ नहीं दिखाया गया. प्राचीन मिस्रवासियों ने शायद यह सोचकर देवी के हाथों में संतुलित तराजू दिया होगा कि न्याय में संतुलन होना चाहिए.
ग्रीक पौराणिक कथाओं में ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में डाइक नाम की एक देवी की कहानी है. वह सत्य और न्याय की देवी हैं. उनके दाहिने हाथ में तराजू है. दूसरा हाथ नीचे पड़ी हुई तलवार को छूता है. इसका अर्थ है कि परमात्मा संतुलित ढंग से न्याय करता है और आवश्यकता पड़ने पर हाथ में तलवार लेकर दंड भी देता है.
मिस्र और ग्रीक पौराणिक कथाओं के प्रभाव में, रोमनों ने न्याय की देवी की कल्पना की और उसका नाम रखा – जस्टिसिया. उस देवी के एक हाथ में तराजू और एक हाथ में तलवार थी. रोमन साम्राज्य में न्याय उस देवी से प्रार्थना करके किया जाता था. रोमन साम्राज्य के संस्थापक ऑगस्टस ने इस देवी की साक्षी में न्याय करना शुरू किया और अपने दरबार में जस्टिसिया की एक मूर्ति भी बनवाई. रोमन साम्राज्य में उनके उत्तराधिकारियों ने जस्टिसिया के लिए एक मंदिर भी बनवाया और इस प्रकार जस्टिसिया न्याय की देवी के रूप में रोमन साम्राज्य में पूजनीय बन गईं.
रोमनों के प्रभाव में, न्याय की देवी की अवधारणा धीरे-धीरे यूरोप के राजाओं में विकसित होने लगी. जस्टिसिया देवी से प्रेरित होकर ब्रिटेन ने न्याय को जस्टिस कहना शुरू कर दिया और परिणामस्वरुप ‘जस्टिस’ शब्द दुनिया भर में फैली अंग्रेजी भाषा में लोकप्रिय हो गया और न्याय के लिए जस्टिस शब्द का भी प्रयोग किया जाने लगा.
खैर, लेकिन तब तक न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं बंधी थी. न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार थी, लेकिन उनकी आंखें खुली थी.
तो फिर आंखों पर पट्टी कहां से आई?
न्याय की देवी की आंखों पर एक बार व्यंग्य करने के लिए पट्टी बांध दी गई थी. इसके बाद निष्पक्ष न्याय का विचार तो बहुत बहुत बाद में आया. स्विस में जन्मे मूर्तिकार हेंस गीएंग ने कई मूर्तियां बनाईं, लेकिन न्याय की देवी की उनकी मूर्ति सबसे प्रसिद्ध हो गयी. न्याय की देवी की अवधारणा इस मूर्तिकार ने मूर्ति बनायी उसके सैकड़ों साल पहले की है – एक हाथ में तराजू, एक हाथ में तलवार और खुली आंखें. लेकिन हेंस गीएंग ने जो मूर्ति बनाई उसमें उन्होंने न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बांध दी.
मूर्तिकार मूल रूप से पुनर्जागरण काल (Renaissance) से प्रभावित था और उसने न्यायतंत्र पर कटाक्ष करने के लिए ऐसा किया था. पट्टी के अलावा, उसने न्याय की देवी के दाहिने हाथ में एक बिना म्यान की तलवार और उसके बाएं हाथ में तराजू रखा, वो भी एक तरफ थोड़ा झुका हुआ. इसके पीछे मूर्तिकार का आशय यह था कि न्यायतंत्र असा हो गया है कि अब उसके दाहिने हाथ में हमला करने के लिए खुली तलवार है. तराजू बाएं हाथ में और आंखें बंद का मतलब है कि न्याय कैसे मिलेगा. यह मूर्ति स्विट्जरलैंड के बर्न शहर में स्थापित की गई थी. 481 साल बाद आज भी वह मूर्ति वहीं खड़ी है.
विद्वानों ने इस मूर्तिकला का विश्लेषण किया. कई विचारकों ने निष्कर्ष निकाला कि न्याय की देवी की आंखें बंद हैं, अर्थात वह निष्पक्ष रूप से न्याय करती है, चाहे उसके सामने कोई भी हो, वह केवल सत्य पर विचार करती है.
यह विश्लेषण पूरी तरह प्रसिद्ध हो गया. मूर्तिकार द्वारा किये गए सब भूल गए. न्याय की देवी के निष्पक्ष न्याय का यह नया रूप यूरोप में तेजी से फैल गया. ब्रिटेन ने भी आंखों पर पट्टी बांधी हुयी न्याय की देवी की अवधारणा को अपनाया और इस विचार को भारत जैसे उन देशों में फैलाया जहां उसने शासन किया था.
आज दुनिया भर में न्याय की देवी को लेडी जस्टिस कहा जाता है. ज्यादातर देशों में न्याय के प्रतीक के रूप में एक हाथ में तराजू, एक हाथ में तलवार और आंखों पर पट्टी बांधी हुयी न्याय की देवी की मूर्ति देखने को मिलती है. अमेरिका-ब्रिटेन-फ्रांस-चीन-भारत समेत दुनिया के 150 देशों में न्याय के प्रतीक के रूप में कुछ बदलावों के साथ लगभग एक ही संदेश देने वाली मूर्ति लोकप्रिय है.
लेकिन भारत में अब न्याय की देवी ने स्वदेशी रूप धारण कर लिया है. सीजेआई के सुझाव पर भारत में न्याय की देवी की आंखों से पट्टी को खोल दिया गया है और बाएं हाथ से तलवार हटाकर संविधान स्थापित कर दिया गया है. इतना ही नहीं अब उनका पहनावा भी वेस्टर्न कपड़ों की जगह इंडियन हो गया है.
इसके साथ ही भारत की न्याय की देवी अवतरित हो चुकी है, इसलिए अब ‘अंधा कानून’ या ‘अंधा न्याय’ जैसे शब्द अब भारतीय न्याय के संदर्भ में आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किए जा सकेंगे.